Navratri Special: मां दुर्गा की आराधना के पर्व नवरात्रि पर हर देवी मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। ऐसे में लोग अपनी-अपनी आस्था के अनुसार, देवी शक्ति के विभिन्न स्वरूपों को पूजते हैं लेकिन उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में मां यशवंतरी देवी नाम का एक मंदिर है जिसकी मान्यता काफी अधिक है। चैत नवरात्रि के दिनों में यहां दूर-दराज से श्रद्धालु पूजा-अर्चना को आते हैं।
मंदिर में आने वाले भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है (Navratri Special)
मान्यता है कि इस मंदिर में आने वाले भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है। नवरात्रि पर यहां मेला लगता है। इसी आस्था के साथ नवरात्रि पर यशवंतरी देवी मंदिर में भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। मान्यता यह भी है कि पूर्णागिरी से लौटकर आते समय मां यशवतंरी देवी के दर्शन करने के बाद ही यात्रा पूर्ण मानी जाती है। मंदिर के शुरुआत से ही यहां प्राचीन तालाब है, जो आज भी बरकरार है। माता रानी की हर मंदिर की अलग कहानी होती है तो चलिए जानते है आखिर क्यों मां यशवन्तरी देवी मंदिर से लोगों की आस्था जुड़ी है।
प्राइम न्यूज चैनल के संवादाता करन सिंह से खास बातचीत करते हुए मंदिर के महंत पं. राजेश बाजपेयी ने बताया कि वे अपने परिवार की 8वीं पीढ़ी से हैं, जो कि इस समय मंदिर में महंत हैं, उन्होंने बताया कि मां यशवंतरी देवी का मंदिर करीब 800 वर्ष पुराना है। वहीं उत्तर प्रदेश गजेडियर के अनुसार मंदिर का इतिहास लगभग 400 वर्ष पुराना है।
क्या है मंदिर का इतिहास? (Navratri Special)
मंदिर के महंत पं. राजेश बाजपेयी ने बताया कि पौराणिक काल में पीलीभीत के चारों तरफ पीली मिट्टी से बनी एक दीवार हुआ करती थी, जिसके आधार पर शहर का नाम पीलीभीत पड़ा, वहीं इसके चार द्वार हुआ करते थे। उत्तरी द्वार पर नकटा नाम का एक राक्षस पीलीभीत में आने-जाने वाले मवेशी और लोगों को अपना शिकार बनाता था।
मां यशवंतरी देवी काली का स्वरूप थीं उन्होंने नकटा राक्षस का वध कर पीलीभीत को बचाया था, ऐसे में मां यशवंतरी देवी ने राक्षस का वध करने के बाद जहां विश्राम किया था और जल ग्रहण किया था, वहां इस मंदिर की स्थापना की गई है। आज भी मंदिर में वध में प्रयोग किए गए शस्त्र और जल सेवन करने वाला पात्र मौजूद हैं, जिसकी यहां आने वाले श्रद्धालु दर्शन और पूजा-अर्चना करते हैं। बहीं पीलीभीत के साथ-साथ आसपास जिलों के लोग भी पीलीभीत यशवंत्री देवी मंदिर पर हजारों की संख्या में श्रद्धालु आकर पूजा अर्चना करते हैं।