चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) से विक्रम लैंडर का संपर्क टूटने के बाद ऑर्बिटर (Orbiter) लगातार चांद के चक्कर लगा रहा है, साथ ही ऑर्बिटर में मौजूद पेलोड्स इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) को चांद के सतह की तस्वीरें भी भेज रहा है, ताकि चांद के वातावरण का अध्ययन किया जा सके। इस बार ऑर्बिटर ने बेहद ही खूबसूरत 3D तस्वीर भेजी है। इस बात की जानकारी ISRO ने अपने आधिकारिक ट्वीटर हैंडल के जरिए दी है कि आर्बिटर ने चांद की सतह से इस 3D तस्वीर को क्लिक किया है जिसे टैरेन मैपिंग कैमरा 2 के जरिए क्लिक किया गया है।
ISRO ने अपने ट्वीट में लिखा है, Chandrayaan-2 के TMC-2 द्वारा क्लिक किए गए क्रेटर 3D तस्वीर पर ध्यान दीजिए। TMC-2 के जरिए 5m स्पेटियल रिजोल्यूशन और स्टीरियो ट्रिपलेट्स (फोर, नादिर और आफ्ट व्यूज) मिलते हैं।
#ISRO
Have a look of 3D view of a crater imaged by TMC-2 of #Chandrayaan2. TMC-2 provides images at 5m spatial resolution & stereo triplets (fore, nadir and aft views) for preparing DEM of the complete lunar surface.For more details visit https://t.co/urlZqzg3Gw pic.twitter.com/VBvUeH1L8s
— ISRO (@isro) November 13, 2019
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, सभी तस्वीरें 100 किलोमीटर ऑर्बिट से ली गई हैं। तस्वीर में साफतौर पर देखा जा सकता है कि चांद पर एक बड़ा सा गड्ढा है और यह गड्ढा लावा ट्यूब जैसा दिखाई दे रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक लावा ट्यूब से जीवन की संभावनाओं की जानकारी का पता चलता है। इसके अतिरिक्त भविष्य में शोध के लिए भी यह काफी मददगार साबित होगा।
बता दें कि सितंबर में चांद की कक्षा पर कदम रखने से महज कुछ मिनट पहले ही विक्रम लैंडर से संपर्क टूट गया था। इसके बावजूद वैज्ञानिक चंद्रयान 2 के ऑर्बिटर की मदद से चांद की सतह का अध्ययन कर रहे हैं।
ISRO इससे पहले भी चंद्रयान-2 से ली गई तस्वीरों को ट्वीट कर चुके हैं। ISRO का चंद्रयान-2 मून मिशन कई मायनों में खास रहा है। इस मून मिशन को पूरी तरह से स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।
गौरतलब है कि पेलोड एक टैरेन मैपिंग कैमरा है जिसका इस्तेमाल चंद्रयान 1 के समय किया गया था। यह चांद की सतह पर पैनोक्रोमैटिक स्पेक्ट्रल बैंड (0.5-0.8 माइक्रोन) क्षमता के हाई रेजोल्यूशन की तस्वीर क्लिक कर सकता है। यह चांद की कक्षा से 100 किलोमीटर की दूरी से 5 मीटर से लेकर 20 किलोमीटर तक की तस्वीर ले सकता है। इसके द्वारा कलेक्ट किए गए डाटा की 3D मैपिंग के जरिए जानकारी इकट्ठा की जा सकती है। इसके अलावा भी चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर के साथ कई और पेलोड्स सेंड किए गए हैं।
अब चंद्रयान-3 की बारी, ISRO कर रहा तैयारी-
वहीं चंद्रयान-2 के बाद ISRO अब जल्द ही चंद्रयान-3 को चंद्रमा पर भेज सकता है। ISRO ने इसकी तैयारी शुरू कर दी है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो ISRO अपने मून मिशन के लिए चंद्रयान-3 को नवंबर 2020 में लॉन्च कर सकता है। बताया जा रहा है कि हाल ही में चंद्रयान-3 मिशन के लिए ISRO की ओवरव्यू कमिटी की बैठक हुई थी, जिसमें कमिटी ने अपनी सिफारिशें रखी हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के मुताबिक, कमिटी ने अपनी सिफारिशों में संचालन शक्ति, सेंसर, इंजिनियरिंग और नेविगेशन को लेकर अपने प्रस्ताव रखे हैं। ISRO ने चंद्रयान-3 के लिए कई समितियां बनाई हैं और पैनल के साथ तीन सब कमिटी की अक्टूबर से अब तक तीन हाई लेवल मीटिंग भी हुई हैं।
वहीं बताया यह भी जा रहा है कि इसरो के मिशन मून के चंद्रयान-3 में ऑर्बिटर को नहीं भेजा जाएगा, बल्कि इसमें लैंडर और रोवर ही होगा। ऐसा इसलिए क्योंकि, चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर पहले से ही चंद्रमा की कक्षा में है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ऑर्बिटर ठीक से काम कर रहा है और अगले 7 साल तक ऐसे ही काम करता रहेगा।
चंद्रयान-3 में इन बातों का रखा जा रहा है विशेष ध्यान
इसरो के वैज्ञानिक चंद्रयान-3 को लॉन्च करने से पहले कई बातों पर विशेष ध्यान दे रहे हैं। वैज्ञानिकों की कोशिश है कि इस बार लैंडर के पांव को पहले से ज्यादा मजबूत बनाया जाए, जिससे लैंडिंग के दौरान लैंडर को किसी भी तरह का नुकसान न हो। इसके लिए चंद्रयान-3 में कई तरह के बदलाव किए गए है, जिससे चंद्रयान-3 पृथ्वी और चांद के कम चक्कर लगाएगा।
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में यह भी दावा किया जा रहा है कि चंद्रयान-3 की तैयारी तो शुरू हो गई है। लेकिन, अभी इसमें 3 साल का वक्त लग सकता है क्योंकि, इसके लैंडर, रोवर, रॉकेट और पेलोड्स को तैयार करने में कम से कम तीन साल का समय लगेगा।