UN Report on Terrorism: तालिबान और अल-कायदा के करीबी रिश्ते के बीच कश्मीर निशाने पर

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Kabul: तालिबान के कब्ज़े के बाद अफगानिस्तान (Afghanistan) में रह रहे आतंकी संगठन एक बार फिर अपने नापाक मंसूबों के साथ कश्मीर में पांव पसारने के लिए कोशिशे कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र ने ये आशंका आतंकी संगठन की पत्रिका के नाम में बदलाव को लेकर जताई है। अफगानिस्तान (Afghanistan) की शांति, स्थिरता एवं सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करने वाले तालिबान व संगठनों और संस्थाओं के संबंध में संकल्प के दौरान विश्लेषणात्मक सहायता और प्रतिबंध निगरानी दल की 13वीं रिपोर्ट शनिवार को पेश की गई थी।

अफगानिस्तान (Afghanistan) में तालिबान के कब्जे के ठीक 9 महीने बाद जारी रिपोर्ट के अनुसार, ‘अफगानिस्तान (Afghanistan) में नई परिस्थितियां अल-कायदा की तरह AQIS को भी खुद को पुनर्गठित करने की इजाजत दे सकती हैं। एक्यूआइएस की पत्रिका का नाम वर्ष 2020 में नवा-ए-अफगान जिहाद से बदलकर नवा-ए-गजवा-ए हिंद किया जाना एक तरह का संकेत है कि वह अपना ध्यान एक बार फिर अफगानिस्तान से कश्मीर की ओर केंद्रित कर रहा है।

उस रिपोर्ट में बताया गया है कि अल-कायदा के अधीनस्थ होने के कारण AQIS अफगानिस्तान (Afghanistan) में ज्यादा चर्चा में नहीं रहता, लेकिन वहां उसके अधिकतर आतंकी लगभग 180-400 तक की संख्या मौजूद रहती है। इनमें अधिकतर, भारत, म्यांमार व पाकिस्तान आदि के नागरिक शामिल हैं। बताया जा रहा है ये लोग गजनी, हेलमंद, कांधार, निमरुज, पक्तिका व जाबुल प्रांत में सक्रिय हैं।

अफगानिस्तान में सक्रिय हैं पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के कैंप

जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि 26/11 मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के नेतृत्व वाले लश्कर-ए-तैयबा व जैश-ए-मोहम्मद के आतंकी प्रशिक्षण शिविर अब भी अफगानिस्तान में पूरी तरह से सक्रिय हैं। नंगरहार प्रांत में आठ प्रशिक्षण शिविर मौजूद हैं, जिनमें तीन का नियंत्रण प्रत्यक्ष रूप से तालिबान (Taliban) के हाथ में है।

आगे इस रिपोर्ट में कहा गया है कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) विदेशी लड़ाकों का सबसे बड़ा आतंकी घटक है, जिसके सदस्यों की संख्या हजारों में बताई जा रही है। वहीं बताया जा रहा है कि हक्कानी नेटवर्क के भी संबंध अल-कायदा से बने हुए हैं।

अंतरराष्ट्रीय हमले में सक्षम नहीं ISIL व अल-कायदा

रिपोर्ट के अनुसार ऐसा माना जा रहा है कि इस्लामिक स्टेट इन इराक एंड द लिवेंट-खुरासान (ISIL-K) और अल-कायदा का इरादा भले ही कुछ और हो, लेकिन वे वर्ष 2023 से पहले अंतरराष्ट्रीय हमले करने में बिलकुल भी सक्षम नहीं हैं। तालिबान के उन पर कार्रवाई करने से कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन अफगानिस्तान की जमीं पर इस तरह किसी आतंकी संगठन का पनपना पड़ोसी देशों और व्यापक अंतरराष्ट्रीय समुदाय के लिए चिंताजनक है।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने तालिबान प्रतिबंध समिति के अध्यक्ष के तौर पर सुरक्षा परिषद के सदस्यों के संज्ञान में लाने के लिए इस तरह की रिपोर्ट पेश की और परिषद में दस्तावेज़ जारी किया। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अल-कायदा और तालिबान (Taliban) के बीच करीबी रिश्ते बरकरार हैं।

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