कोरोना वायरस का कहर देश के लिए चुनौती बना हुआ है. ऐसे में हर एक देशवासी इस महामारी के खात्मे के लिए सरकार के साथ खड़ा है. इसमें क्या आम क्या खास सभी सरकार के साथ कोरोना की जंग का भागीदार बन रहें हैं. इसके लिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से ‘PM-Cares Fund’ की शुरुआत की गई, जिसमें कई उद्योगपतियों से लेकर आम लोगों ने मदद दी. लेकिन अब इसको लेकर विवाद सामने आ रहा है.
बता दें कि विपक्ष की ओर से इस फंड में दी जाने वाली राशि को CSR (कॉर्पोरेट-सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) मानने पर सवाल किए हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट में दायर एक याचिका में इसके गठन की जांच की मांग की गई है.
दरअसल, पीएम केअर्स फंड में दिए जाने वाली राशि को कॉरपोरेट मंत्रालय द्वारा CSR (कॉर्पोरेट-सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) के तहत माना जाएगा, जबकि मुख्यमंत्री फंड में दी जाने वाली राशि के साथ ऐसा नहीं है जिस पर विपक्ष सवाल उठा रहा है.
याचिका में इस ट्रस्ट के ट्रस्टी कौन हैं, इनकी जानकारी मांगी गई है और काम करने का तरीका पूछा है. याचिका में मांग की गई है कि इसकी जांच कोर्ट की निगरानी में एक एसआईटी टीम करे. चीफ जस्टिस एस. ए. बोबडे की अगुवाई में सुप्रीम कोर्ट की बेंच इस मामले को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सुनेगी.
मामले में ट्रस्ट के गठन के अलाव एक सवाल और भी उठ रहा है. क्योंकि केंद्रीय कॉरपोरेट मंत्रालय की ओर से कहा गया कि पीएम केअर्स में इंडस्ट्री के द्वारा दी गई राशि को कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सबिलिटी (CSR) के आधार पर मानी जाएगी, लेकिन अगर मदद की राशि मुख्यमंत्री राहत कोष में जाती है तो ऐसा नहीं माना जाएगा. इसी आदेश पर अब कई विपक्षी पार्टियां सवाल उठा रही हैं. सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेर रही हैं.
केंद्र के इस आदेश पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मांग की है कि जिस तरह पीएम केअर्स में दी जाने वाली राशि CSR मानी जा रही है, उसी प्रकार सीएम फंड में दी जाने वाली राशि को भी माना जाए. ममता बनर्जी के अलावा तेलंगाना के मुख्यमंत्री. के. चंद्रशेखर राव ने इस मसले पर पीएम नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा है.