- भू-समाधी देने का कारण है की साधु का तन और मन निर्मल रहता है
- साधु में आसक्ति नहीं होती है इसलिए दी जाती है भू-समाधी
- साधु की इच्छा के हिसाब से भू -समाधी की जगह चुनी जाता है
Prayagraj. उत्तर प्रदेश में भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि (Narendra Giri) को बुधवार (Wednesday) को प्रयागराज (Prayagraj) स्थित बाघंबरी मठ (Baghambari Math) में भू-समाधि (Bhu-Samadhi) दी गई। गिरी ने अपने कथित सुइसाइड नोट में यह इच्छा जताई थी कि उन्हें बाघंबरी मठ में ही उनके गुरु की समाधि के पास भू-समाधि दी जाए। भू-समाधि देने से पहले महंत नरेंद्र गिरि के पार्थिव शरीर को फूलों से सजे रथ पर रखकर संगम ले जाया गया और गंगा स्नान कराया गया ।
उसके बाद उन्हें लेटे हनुमान जी के मंदिर ले जाया गया और फिर बाघंबरी मठ पर अंतिम विदाई दी गई। नरेंद्र गिरि लेटे हनुमान जी मंदिर के महंत भी थे। भू-समाधि के बाद अब लोगों के दिमाग में सवाल उठने लगे हैं कि आखिर साधु-संतों को भू-समाधि क्यों दी जाती है? क्या है पूरी प्रक्रिया और कब से इसका इतिहास ?
क्यों दी जाती है भू-समाधि (Bhu-Samadhi) ?
सनातन मान्यतों के मुताबिक संत परंपरा में तीन तरह से संस्कार होते हैं। इनमें दाह संस्कार, भू-समाधि और जल समाधि शामिल है। इससे पहले भी कई संतो के दाह संस्कार और जल समाधि की खबर आई है। लेकिन नदियों में प्रदूषण को देखते हुए अब जल समाधि का चलन कम हो गया है। अब ज्यादातर संतों को भू-समाधि देने की परंपरा है। सनातन धर्म में देहांत के बाद दाह संस्कार किया जाता है जबकि बच्चे को दफनाया जाता है और साधुओं को समाधि दी जाती है। इसके पीछे भी कई तर्क हैं। माना जाता है कि साधु और बच्चों का तन और मन निर्मल रहता है। साधु और बच्चों में आसक्ति नहीं होती है। शास्त्रों के अनुसार पांच वर्ष के लड़के और सात वर्ष की लड़की का दाह संस्कार नहीं होता है।
भू-समाधि (Bhu-Samadhi) की प्रक्रिया क्या है ?
भू-समाधि (Bhu-Samadhi) के लिए सबसे पहले जगह तय किया जाता है। या फिर मरने वाले साधु की ईच्छा के हिसाब से जगह चुना जाता है। जगह पर पूरे विधि-विधान से समाधि को खोदा जाता है। वहां बकायदा मंत्रो और शंख की आवाज के बीच पूजा-पाठ किया जाता है। पूरे जगह को गंगाजल से शुद्ध किया जाता है। भू-समाधि में दिवंगत साधु को समाधि वाली स्थिति में ही बैठाया जाता है। बैठने की इस मुद्रा को सिद्ध योग मुद्रा कहा जाता है। बताते हैं कि संतों को समाधि इसलिए भी दी जाती है ताकि बाद में उनके अनुयायी अपने आराध्य-गुरु का दर्शन और अनुभव उनकी समाधि स्थल पर कर सकें।
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