Jatoli Shiva Temple: एशिया का सबसे बड़ा शिव मंदिर सोलन में, बनने में लगे 39 साल 

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भगवान भोलेनाथ का एशिया की सबसे बड़ी मंदिर देव भूमि हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर में

Jatoli Shiva Temple: क्या आप भगवान शिव के भक्त हैं? और क्या आप उनके मंदिर घूमने के लिए सोलन जाना चाहते हैं? तो आज हम आपको बताएंगे एशिया के सबसे ऊंचे जटोली शिव मंदिर (Shiv Temple) के बारे में। भगवान भोलेनाथ का एशिया (Asia) की सबसे बड़ी मंदिर देव भूमि हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh)के सोलन (Solan) शहर में है। सोलन हिमाचल प्रदेश के एक बड़े शहर शिमला से 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सोलन से केवल 7 किलोमीटर की दूरी पर यहां भगवान भोलेनाथ की एशिया की सबसे बड़ी मंदिर स्थित है।

भगवान भोलेनाथ का एशिया की सबसे बड़ी मंदिर देव भूमि हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर में

भोलेनाथ के मंदिर को द्रविड़ शैली क्यों कहा जाता है?

भोलेनाथ का यह मंदिर दक्षिण द्रविड़ शैली में बनाया गया  है। आपको बता दें कि यह शैली दक्षिण भारतीय स्थापत्य कला शैली की तीन शैलियों में से एक शैली है। माना जाता है कि इस शैली का विकास दक्षिण भारत ( South India) में हुआ था इसीलिए इसे द्रविड़ शैली कहा जाता है। द्रविड़ शैली में बने भोलेनाथ के इस मंदिर की विशेष बात यह भी है कि इस मंदिर को बनाने में 39 साल लगे हैं। आप इसके निर्माण में लगे वर्ष से पता लगा सकते हैं कि 39 साल में इस मंदिर को कितना भव्य बनाया गया होगा।इस मंदिर को बनाने में 39 साल क्यों लगा? इसके पीछे एक प्रमुख कारण है। वास्तव में इस मंदिर को सरकार द्वारा और किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा नहीं बनवाया जा रहा है।

बल्कि इस मंदिर को लोगों द्वारा दिए गए दान के पैसों से बनवाया जा रहा है इस मंदिर में निर्माण में करोड़ों रुपयों की लागत आई है और इतने पैसे का एक साथ दान मिलना ट्रस्ट के लिए बहुत बड़ी बात थी।

भगवान भोलेनाथ का एशिया की सबसे बड़ी मंदिर देव भूमि हिमाचल प्रदेश के सोलन शहर में

मंदिर को बनवाने में लगे 39 साल 

इस मंदिर का निर्माण दान के पैसों से होने के कारण ही इसे बनाने में 39 साल लग गए।मंदिर के अंदर भगवान शिव की शिवलिंग स्थापित किया गया है और मान्यता है कि इस शिवलिंग की स्थापना रामकृष्ण परमहंस(Ramakrishna Paramhansa) द्वारा कराया गया था।मंदिर परिषद के दाएं ओर भगवान शिव की प्रतिमा भी स्थापित की गई है।मंदिर की ऊंचाई लगभग 122 फुट तक बताई जाती है और इसलिए ही यह एशिया की सबसे बड़ी शिव मंदिर के रूप में जानी जाती हैं। जैसा की आप सभी लोगों को पता होगा की भारत के इस पावन भूमि में भगवान शिव ने स्वयं 12 जगह प्रगट होकर दर्शन दिए हैं और उन्ही 12 जगहों में भगवान शिव पर आधारित 12 ज्योतिर्लिंगों का निर्माण कराया गया है।ऐसी भी मान्यता है कि उन 12 जगहों के अलावा भगवान शिव ने और अन्य कई जगहों में दर्शन दिए हैं। यह मंदिर भी उन्हीं में से एक है।

मंदिर की स्थापना रामकृष्ण परमहंस द्वारा की गई

माना जाता है कि यहां पर भगवान शिव ने दर्शन दिए थे। कई लेखों द्वारा यह भी पता लगता है कि भगवान शिव यहां पर आकर कुछ दिन के लिए रुके थे।शायद यही एक कारण है कि इस मंदिर की मान्यता भगवान शिव के यहां पर रुकने के कारण और भी बढ़ जाती है। माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना रामकृष्ण परमहंस द्वारा की गई है। ऐसा माना जाता है कि रामकृष्ण परमहंस इस जटोली में सन 1950 में आए थे।
कहा जाता है कि रामकृष्ण परमहंस ने यहां पर आकर तपस्या भी की थी जिसके पश्चात इस मंदिर का निर्माण सन 1974 में शुरू कराया गया।

इस मंदिर के निर्माण कार्य के शुरू होने के लगभग 9 से 10 साल पश्चात सन 1983 में रामकृष्ण परमहंस (Ramakrishna Paramhansa)जी का दुखद निधन हो गया लेकिन फिर भी इस मंदिर का निर्माण नहीं रुका और इस मंदिर का निर्माण कार्य चलता रहा।इस मंदिर का निर्माण पूरी तरह से भक्तों के दान दक्षिणा से ही कराया जा रहा है और इस मंदिर के निर्माण में अभी तक करोड़ों रुपए की लागत आ गई है।इस मंदिर में 11 फुट लंबा स्वर्ण कलश भी चढ़ाया गया है। इसी स्वर्ण कलश के कारण इस मंदिर की ऊंचाई 122 मीटर फुट हो गई है।

मंदिर के पत्थरों से डमरू की आवाज

इस मंदिर की खास बातों में एक बात यह भी है कि यहां पर पत्थरों से डमरू की आवाज आती है। माना जाता है कि यहां पर भगवान शिव कुछ समय के लिए रुके थे।जिसके कारण उनके डमरू की आवाज इन पत्थरों में समा गई और आज भी इन पत्थरों को थपथपाने से डमरू की आवाज आती है।
अगर आप इस मंदिर घूमने जा रहे हैं तो आपके लिए सबसे अच्छा दिन रविवार को होगा। क्योंकि हर रविवार को यहां पर एक विशेष भंडारे का आयोजन कराया जाता है। इस भंडारे में भक्तों को भोलेनाथ जी का प्रसाद दिया जाता है। इसी प्रसाद को पाने के लिए स्थानीय लोगों के साथ साथ दूर दूर से भी लोग आते हैं।

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