नई दिल्ली: रंगों और हर्षोल्लास का त्योहार होली इस बार 10 मार्च मनाया जा रहा है। होली से 8 दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाता है, जो इस बार 3 मार्च से शुरू हो रहा है। माना जाता है कि होलाष्टक के समय में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। इस समय में विवाह करना अत्यंत अशुभ माना गया है।
शिवपुराण में ऐसी है मान्यता
शिव पुराण में होलाष्टक के अशुभ समय होने की वजह का पता चलता है। पौराणिक कथा के अनुसार तारकासुर नाम के राक्षस का वध करने के लिए शिव और पार्वती को विवाह करना आवश्यक था, क्योंकि इन दोनों के पुत्र के हाथों ही उस राक्षस का वध होना था, लेकिन सती माता के खुद को दाह कर लेने के बाद भगवान शिव तपस्या में लीन हो गए। शिव के तपस्या में लीन होने के बाद देवी-देवता परेशान हो गए। शिव की तपस्या भंग कराने के लिए देवताओं ने कामदेव और रति को भेजा, जिनकी वजह से भगवान शिव की तपस्या तो भंग हो गई, लेकिन उनका क्रोध चरम पर पहुंच गया। भगवान शिव का क्रोध इतना बढ़ गया कि उन्होने अपने तीसरे नेत्र को खोलकर उसकी अग्नि से कामदेव को भस्म कर दिया।
यह घटना फाल्गुन शुक्लपक्ष की अष्टमी को हुई। उसके 8 दिन तक देवतागणों में शोक की लहर छाई रही, वहीं कामदेव की पत्नी रति का विलाप कर-करके बुरा हाल हो गया। इस घटना के 8 दिन बाद जब देवताओं और देवी रति ने शिव भगवान से माफी मांगी तो भगवान शिव ने कामदेव को फिर से जीवित करने होने का वरदान दे दिया। जब कामदेव फिर से जीवित हुए तो इस खुशी में रंगोत्सव मनाया गया।
ये है मान्यता
मान्यता है कि होलाष्टक के समय में कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए। होलाष्टक से पूर्णिमा तक ग्रहों की चाल अच्छी नहीं होती है, जो शुभ कार्यों के भी अशुभ परिणाम देती है। माना जाता है कि अष्टमी से पूर्णिमा तक सभी दिन ग्रह उग्र होते हैं, जैसे अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र रहते हैं। इस स्थिति में बुरी शक्तियां ज्यादा प्रभावी रहती है, इसलिए इस तिथि के दौरान शुभ कार्यों को करने से मना किया जाता है।