शास्त्री जयंती: पत्नी के लिए साड़ी खरीदने पर दुकानदार से क्यों भिड़ गए थे शास्त्रीजी, जानिए रोचक किस्से

2 अक्टूबर को देश की दो महान हस्तियों का जन्म हुआ था। पहले थे महात्मा गांधी और दूसरे लाल बहादुर शास्त्री। देश आज इन दोनों की जयंती मना रहा है। लेकिन हम यहां पर लाल बहादुर शास्त्री की बात करेंगे और जानेंगे उनकी सच्ची, सादगी से भरी जिंदगी से जुड़े कुछ अनसुने किस्से।

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शास्त्री जयंती पर उनसे जुड़े रोचक किस्से, जो नहीं पता होंगे आपको

नई दिल्ली। भारत के दो बड़े नेता लाल बहादुर शास्त्री और महात्मा गांधी का आज जन्मदिन है। हम यहां पर देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के बारे में जानेंगे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शास्त्री जी की जयंती पर उनको याद करते हुए कहा कि जय जवान जय किसान के उद्घोष से देश में नव-ऊर्जा का संचार करने वाले पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी को शत-शत नमन।

लाल बहादुर शास्त्री का जीवन हर उस नौजवान के लिए प्रेरणादायक है जो अभावों में जी रहा है। किस तरह से उन्होंने कम सुविधाओं में भी अपनी पढ़ाई पूरी की और देश के सर्वोच्च पद पर काम किया। शास्त्री जी का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को मुगलसराय में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहां हुआ था। शास्त्री जी 9 जून 1964 से 11 जनवरी 1966 को अपने मृत्यु तक लगभग 18 महीने भारत के प्रधानमंत्री रहे। उन्होंने 9 जून 1964 को भारत के प्रधानमंत्री का पद ग्रहण किया था। शास्त्री जी के ही कार्यकाल में भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ था और भारतीय सेना उन्हीं के घर में घुसकर पाकिस्तानियों को धो कर आई थी।

शास्त्री जी की जयंती पर जानते हैं उनसे जुड़े कुछ किस्से कुछ कहानियां…

थर्ड क्लास में लगवाए थे पंखे

लाल बहादुर शास्‍त्री प्रधानमंत्री बनने से पहले विदेश मंत्री, गृह मंत्री और रेल मंत्री जैसे अहम पदों पर थे। एक बार वे रेल की एसी बोगी में सफर कर रहे थे। इस दौरान वे यात्रियों की समस्या जानने के लिए थर्ड क्लास (जनरल बोगी) में चले गए। इसके बाद उन्होंने वहां की दिक्कतों को देखा और अपने PA पर नाराज भी हुए। फिर उन्‍होंने थर्ड क्लास में सफर करने वाले पैसेंजर्स को फैसिलिटी देने का फैसला करते हुए जनरल बोगियों में पहली बार पंखा लगवाया और साथ ही पैंट्री की सुविधा भी शुरू करवाई।

VVIP कल्चर नहीं था पसंद

शास्त्री जी किसी भी प्रोग्राम में VVIP की तरह नहीं, बल्कि आम आदमी की तरह जाना पसंद करते थे। प्रोग्राम में इवेंट ऑर्गनाइजर उनके लिए तरह-तरह के पकवान बनवाते तो वे उन्हें समझाते थे कि गरीब आदमी भूखा सोया होगा और मै मंत्री होकर पकवान खाऊं, ये अच्छा नहीं लगता। दोपहर के खाने में वे अक्सर सब्जी-रोटी खाते थे।

जब पत्‍नी ने डाल दिया था चिता में लेटर

शास्त्री जी समझौते के लिए जब ताशकंद गए थे, तो उस समय उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने अपने मन की बातों को एक पत्र में लिख कर रखा था। ताशकंद से 12 जनवरी 1966 को उनका पार्थिव शरीर भारत आया, इसी दिन विजय घाट पर उनकी जलती चिता में उन्होंने वह लेटर इस सोच के साथ डाल दिया कि अब अपने मन की बात वहीं आकर करूंगी।

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पाक को हाजी पीर लौटाने पर नाराज हो गई थीं पत्‍नी

चर्चित पत्रकार कुलदीप नैयर शास्‍त्री जी के प्रेस सचिव थे। एक चर्चित वाकया है जिसे कुलदीप साहब सभाओं में बताया करते थे। बकौल नैयर साल 1966 में ताशकंद में भारत-पाकिस्तान के बीच समझौते पर बतौर प्रधानमंत्री शास्‍त्री जी ने दस्‍तखत किए थे। समझौते के तहत हाजी पीर और ठिथवाल भूक्षेत्र पाकिस्‍तान को वापस किए गए थे। शास्‍त्री जी के इस कदम से भारत में उनकी आलोचना हो रही थी। यहां तक की उनकी पत्‍नी ललिता शास्त्री जी भी नाराज थीं। शास्‍त्री जी ने दिल्‍ली स्थित अपने घर देर रात को फोन मिलाया तो दूसरी तरफ से बड़ी बेटी ने फोन उठाया। शास्‍त्री जी ने कहा… तुम अपनी मां से बात कराओ। बेटी ने जवाब दिया आपने जीते गए क्षेत्र पाकिस्‍तान को दे दिए हैं इससे अम्‍मा नाराज हैं, वह अभी बात नहीं करेंगी। कहते हैं… शास्‍त्री जी भारत के लोगों की संवेदनाएं जानने के बाद असहज हो गए थे।

शास्त्री जी के जीवन से जुड़ा एक रोचक किस्सा…

बात तब की है, जब शास्त्रीजी इस देश के प्रधानमंत्री के पद को सुशोभित कर रहे थे। एक दिन वे एक कपड़े की मिल देखने के लिए गए। उनके साथ मिल का मालिक, उच्च अधिकारी व अन्य विशिष्ट लोग भी थे।

मिल देखने के बाद शास्त्रीजी मिल के गोदाम में पहुंचे तो उन्होंने साड़ियां दिखलाने को कहा। मिल मालिक व अधिकारियों ने एक से एक खूबसूरत साड़ियां उनके सामने फैला दीं। शास्त्रीजी ने साड़ियां देखकर कहा- ‘साड़ियां तो बहुत अच्छी हैं, क्या मूल्य है इनका?’

‘जी, यह साड़ी 800 रुपए की है और यह वाली साड़ी 1 हजार रुपए की है।’ मिल मालिक ने बताया। ‘ये बहुत अधिक दाम की हैं। मुझे कम मूल्य की साड़ियां दिखलाइए,’ शास्त्रीजी ने कहा। ‘जी, यह देखिए। यह साड़ी 500 रुपए की है और यह 400 रुपए की’ मिल मालिक ने दूसरी साड़ियां दिखलाते हुए कहा।

‘अरे भाई, यह भी बहुत कीमती हैं। मुझ जैसे गरीब के लिए कम मूल्य की साड़ियां दिखलाइए, जिन्हें मैं खरीद सकूं।’ शास्त्रीजी बोले।

‘वाह सरकार, आप तो हमारे प्रधानमंत्री हैं, गरीब कैसे? हम तो आपको ये साड़ियां भेंट कर रहे हैं।’ मिल मालिक कहने लगा। ‘नहीं भाई, मैं भेंट में नहीं लूंगा’, शास्त्रीजी स्पष्ट बोले। ‘क्यों साहब? हमें यह अधिकार है कि हम अपने प्रधानमंत्री को भेंट दें’, मिल मालिक अधिकार जताता हुआ कहने लगा।

‘हां, मैं प्रधानमंत्री हूं’, शास्त्रीजी ने बड़ी शांति से जवाब दिया- ‘पर इसका अर्थ यह तो नहीं कि जो चीजें मैं खरीद नहीं सकता, वह भेंट में लेकर अपनी पत्नी को पहनाऊं। भाई, मैं प्रधानमंत्री हूं पर हूं तो गरीब ही। आप मुझे सस्ते दाम की साड़ियां ही दिखलाएं। मैं तो अपनी हैसियत की साड़ियां ही खरीदना चाहता हूं।’

मिल मालिक की सारी अनुनय-विनय बेकार गई। देश के प्रधानमंत्री ने कम मूल्य की साड़ियां ही दाम देकर अपने परिवार के लिए खरीदीं। ऐसे महान थे शास्त्रीजी, लालच जिन्हें छू तक नहीं सका था।

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