निर्भया के दोषियों को तिहाड़ जेल प्रशासन का नोटिस, अंतिम इच्छा से संबंधित पूछे ये सवाल…

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Nirbhaya's guilty

निर्भया गैंगरेप केस के दोषियों को फांसी पर लटकाने के महज कुछ दिन ही शेष रह गए हैं। ऐसे में तिहाड़ जेल प्रशासन दोषियों को फांसी देने से पहले की औपचारिकताएं पूरी करने में जुट गया है। जानकारी के अनुसार, जेल प्रशासन ने निर्भया के दोषियों को नोटिस जारी कर अंतिम इच्छा को बारे में पूछा है। अंतिम इच्छा के अलावा भी जेल प्रशासन ने गुनहगारों से कई सवाल भी पूछे हैं।

मालूम हो कि जेल मैन्युअल के अनुसार, सजा-ए-मौत देने से पहले संबंधित कैदियों से उनकी अंतिम इच्छा के बारे में पूछा जाता है और उनकी इच्छा को पूरा कराया जाता है।

निर्भया के दोषियों से जेल प्रशासन के सवाल-

निर्भया के दोषियों से जेल प्रशासन ने पूछा कि 1 फरवरी को तय उनकी फांसी से पहले वह अपनी अंतिम मुलाकात किससे करना चाहते हैं? उनके नाम अगर कोई प्रॉपर्टी या बैंक खाते में जमा कोई रकम है तो उसे किसी के नाम ट्रांसफर करना चाहते हैं ?

फांसी की सजा पाए निर्भया के चारों गुनहगारों से यह भी पूछा गया कि किसी को नॉमिनी बनाना यानी किसी को वारिस बनाना या नामजद करना चाहते हैं? कोई वसीयत करना चाहते हैं? या फिर कोई धार्मिक या मनपसंद किताब पढ़ना चाहते हैं ?

वहीं निर्भया के दोषियों की फांसी में हो रही देरी पर उठ रहे सवालों को गंभीरता से लोते हुए केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है।

मृत्युदंड के मामलों में देरी को लेकर SC में केंद्र ने दायर की अर्जी-

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में कहा है, मृत्युदंड के मामलों में दोषी को दी गई सजा पर अमल को लेकर सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन सिर्फ अपराधी के हितों की बात करती है। आगे अर्जी में कहा गया है कि मृत्युदंड के मामलों में सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन पीड़ित को राहत देने के बजाए दोषियों को ही राहत देती है।

केंद्र की अर्जी में साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई उस गाइडलाइन को चुनौती दी है. जो ‘शत्रुघ्न चौहान बनाम सरकार’ के मामले में फैसला सुनाते हुए जारी की थी। केंद्र सरकार ने अपनी अर्जी में दलील दी कि यह गाइडलाइन सिर्फ दोषी और अपराधी के अधिकारों की हिमायती है। पीड़ित पक्ष के अधिकारों को लेकर यह गाइडलाइन पूरी तरह से खामोश है, जबकि दोनों पक्ष के बीच संतुलन होना चाहिए .यह गाइडलाइन पूरी तरह से एकतरफा है.

केंद्र सरकार का कहना है कि अगर राष्ट्रपति द्वारा किसी दोषी की दया याचिका खारिज हो जाती है, तो उसे सात दिन के अंदर फांसी दे दी जाए. दया याचिका खारिज होने के बाद उसकी पुनर्विचार याचिका या क्‍यूरेटिव पिटीशन को कोई अहमियत नहीं दी जानी चाहिए।

केंद्र सरकार ने कोर्ट में दाखिल अपनी अर्जी में कहा कि अगर कोई अपराधी राष्ट्रपति के पास दया याचिका दाखिल करने के लिए डेथ वारंट जारी होने के सात दिन का ही समय देना चाहिए.

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