Supreme Court on Abortion: महिला सुरक्षा को लेकर उनके अधिकारों के प्रति सुप्रीम कोर्ट ने एक और ऐतिहासिक आदेश दिया है। किसी विवाहित महिला को जबरन प्रेगनेंट करना मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी ऐक्ट के तहत रेप माना जाएगा, गुरुवार को एक केस की सुनवाई के दौरान ये आदेश दिया। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी ऐक्ट के तहत गर्भपात के नियमों को तय किया है। इस मसले पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि विवाहित या अविवाहित दोनों ही युवतियां बिना किसी की मंजूरी के 24 सप्ताह तक गर्भपात करा सकती हैं। गर्भपात के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत पति द्वारा यौन हमले को मेरिटल रेप के अर्थ में शामिल होना चाहिए।
MTP कानून में विवाहित और अविवाहित महिला के बीच का अंतर कृत्रिम और संवैधानिक रूप से मजबूत नहीं है। यह इस रूढ़िवादिता को कायम रखता है कि केवल विवाहित महिलाएं ही यौन गतिविधियों में लिप्त रहती हैं, न कि अविवाहित। किसी महिला की वैवाहिक स्थिति उसे अनचाहे गर्भ को गिराने के अधिकार से वंचित करने के अधिकार से नहीं रोक सकती है।
क्या कहता है नियम 3 (B)
नियम 3 (B) के दायरे में एकल महिलाओं को शामिल करने का कोई औचित्य नहीं है और यह अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन माना गया। अविवाहित और एकल महिलाओं को गर्भपात करने से रोकना लेकिन विवाहित महिलाओं को अनुमति देना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन में आता है। ये फैसला जस्जिट डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच के द्वारा सुनाया गया है।
25 वर्षीय महिला की शिकायत पर हुई सुनवाई
पीठ 25 वर्षीय अविवाहित महिला द्वारा दायर याचिका पर ये फैसला सुनाया गया है। याचिका में 24 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की मांग की गई थी, जो दिल्ली हाईकोर्ट के उक्त राहत देने से इनकार करने के आदेश के खिलाफ सहमति के रिश्ते से उत्पन्न हुई थी। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि वह 5 भाई-बहनों में सबसे बड़ी है और उसके माता-पिता किसान हैं। उसने बताया कि आजीविका के स्रोत के अभाव में वह बच्चे की परवरिश और पालन-पोषण नहीं कर सकती। 21 जुलाई, 2022 के एक विस्तृत आदेश द्वारा सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को राहत दी थी।