New Delhi: राफेल डील (Rafale Deal) को लेकर विपक्ष अकसर सरकार को घेरने की कोशिश करता रहा है। इस बीच, डिफेंस ऑफसेट पर जारी की गई CAG रिपोर्ट (CAG Report) में कहा गया है कि 36 राफेल लड़ाकू विमान की डील के ऑफसेट कॉन्ट्रैक्ट की शुरुआत में यह प्रस्ताव था कि डीआरडीओ को हाई टेक्नॉलजी देकर वेंडर अपना 30 प्रतिशत ऑफसेट पूरा करेगा। डीआरडीओ को यह टेक्नॉलजी स्वदेशी तेजस लाइट कॉम्बैट एयरक्राफ्ट के लिए इंजन (कावेरी) डिवेलप करने के लिए चाहिए थी।
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सीएजी की रिपोर्ट (CAG Report) को बुधवार को संसद में पेश किया गया। सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि ऑफसेट पॉलिसी से मनमाफिक नतीजे नहीं निकल रहे हैं इसलिए मंत्रालय को पॉलिसी और इसे लागू करने के तरीकों की समीक्षा करने की जरूरत है। जहां पर दिक्कत आ रही है उसकी पहचान कर उसका समाधान ढूंढने की जरूरत है। राफेल पर नियंत्रक और लेखा परीक्षक (कैग) ने संसद में अपनी रिपोर्ट रखी। कैग का कहना है कि उसने अभी तक एक भी मामला ऐसा नहीं देखा है जिसमें विदेशी कंपनी ने भारतीय उद्योग को उच्चस्तरीय तकनीक सौंपी हो।
इसके अलावा कैग ने यह भी कहा कि प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) के मामले में रक्षा क्षेत्र का स्थान कुल 63 क्षेत्रों में से 62वां है। दरअसल, रक्षा मंत्रालय की ऑफसेट-पॉलिसी के अनुसार अगर भारत किसी भी विदेशी कंपनी से 300 करोड़ से ज्यादा का कोई रक्षा सौदा करता है तो उस कंपनी को सौदे की कीमत की 30 प्रतिशत राशि भारत के ही डिफेंस या फिर एयरोस्पेस सेक्टर में लगानी होगी। इसके लिए विदेशी कंपनी किसी भारतीय कंपनी से करार कर सकती है।
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बुधवार को ही एक दूसरी सीएजी रिपोर्ट में वायुसेना की ओर से इजरायल की कंपनी, आईएआई से वर्ष 2010 में यूएवी के लिए खरीदे गए पांच इंजनों पर बड़ा सवाल खड़ा किया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जिस इंजन की कीमत अंतर्राष्ट्रीय मार्केट में 21-25 लाख थी, वायुसेना ने उसे 87.45 लाख रूपये में खरीदा। रिपोर्ट में कहा गया कि उसी इंजन को डीआरडीओ ने मात्र 24.30 लाख में खरीदा था।