क्यों मनाई जाती है होली? होलिका दहन की क्या है मान्यता? जानें यहां

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नई दिल्ली: होलिका दहन का त्योहार इस बार 9 मार्च को मनाया जा रहा है। होलिका दहन का ये त्योहार हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। होलिका दहन से आठ दिन पहले होलाष्टक होता है। इस पूरे हफ्ते होली का उत्सव मनाया जाता है, हालांकि इस सप्ताह में कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता, लेकिन होलिका दहन की लपटें काफी शुभ मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि होलिका की इन लपटों में व्यक्ति के सभी कष्ट जलकर राख हो जाते हैं।

होलिका दहन की कहानी

होलिका दहन की वैसे तो कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, इनमें से एक है दैत्यराज हिरण्यकश्यप की कहानी, ऐसा माना जाता है कि हिरण्यकश्यप खुद को भगवान मानता था और चाहता था कि सभी उसकी पूजा करें, लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु के अलावा और किसी की पूजा नहीं करता था। प्रह्लाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था। यह बात हिरणयकश्यप को नागरवार गुजरी और वह बहुत क्रोधित हुआ। हिरणकश्यप ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर अग्नि में बैठ जाए। दरअसल, होलिका को वरदान मिला था कि आग की लपटे उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती, ऐसे में होलिका भाई का आदेश सुनकर प्रह्लाद को आग में लेकर बैठ गई, लेकिन हुआ उल्टा। भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद का कुछ नहीं हुआ उल्टा होलिका अग्नि की लपटों में जलकर भस्म हो गई। उस दिन फाल्गुन मास की पूर्णिमा थी। इसी घटना की याद में होलिका दहन करने का विधान है। बाद में भगवान विष्णु ने लोगों को हिरणयकश्यप के अत्याचारों से निजात दिलाने के लिए नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया।

होलिका से जुड़ी मान्यता
मान्यता है कि होलिका की अग्नि में सेक कर लाए गए अनाज खाने से व्यक्ति निरोग रहता है। कहा जाता है कि अगर होली की बची हुई अग्नि और राख को अगले दिन अपने घर लाया जाए, तो घर की नकारात्मक शक्ति दूर होती है।

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