अयोध्या विवाद: इन वजहों से खारिज हुआ मुस्लिम पक्ष का दावा, यहां जानिए फैसले की अहम बातें…

देश की सबसे बड़ी अदालत ने अयोध्या मामले पर शनिवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। उल्लेखनीय है कि बीते दो महीनों में 40 दिन की नियमित सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी सबूतों के आधार पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया, जिससे अयोध्या में राम मंदिर बनने का रास्ता साफ हो गया।

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Supreme court

देश की सबसे बड़ी अदालत ने अयोध्या मामले पर शनिवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। उल्लेखनीय है कि बीते दो महीनों में 40 दिन की नियमित सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कानूनी सबूतों के आधार पर सर्वसम्मति से फैसला सुनाया, जिससे अयोध्या में राम मंदिर बनने का रास्ता साफ हो गया।

राम जन्‍मभूमि विवाद पर सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने साफ कर दिया है कि विवादित जमीन ट्रस्‍ट को दी जाए जो मंदिर का निर्माण देखेगी। वहीं सरकार को आदेश दिया है कि वह मस्जिद के लिए अयोध्‍या में 5 एकड़ जमीन उपलब्‍ध कराए। इस काम के लिए कोर्ट ने तीन महीने का वक्त दिया है।

बता दें कि चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के नेतृत्व में 5 जजों की संविधान पीठ ने अयोध्या की विवादित जमीन पर 1045 पेज का फैसला दिया था। इस पीठ में चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल नजीर हैं।

सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की महत्वपूर्ण बातें-

उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या की विवादित जमीन पर सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े के दावे को खारिज कर दिया। लेकिन, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि निर्मोही अखाड़े को सरकार ट्रस्ट में शामिल कर सकती है। यह फैसला सर्वसम्मति से आया है, जिसमें आस्था या विश्वास की जगह सबूतों को आधार बनाया गया है। ऐसे में एक सवाल उठता कि आखिर मुस्लिम पक्ष का दावा क्यों खारिज हुआ ?

मुस्लिम पक्ष का दावा खारिज होने के पीछे ये कुछ अहम बातें हैं…

1.

कानून के जानकारों के अनुसार, सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अपनी दलील में कहा, बाबर के शासनकाल में मंदिर को ढहाकर बाबरी मस्जिद नहीं बनाई गई थी, बल्कि ईदगाह की जगह पर बनाई गई थी। हालांकि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की 2003 की रिपोर्ट में साफ किया गया कि मस्जिद के नीचे से कोई इस्लामिक ढांचा नहीं मिला, लिहाजा मस्जिद ईदगाह पर नहीं बनाई गई। इसके अलावा खुदाई में मस्जिद के नीचे से हिंदू धर्म से जुड़े सबूत मिले।

जानकारों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत एएसआई की रिपोर्ट को सबूत के रूप में स्वीकार किया और मुस्लिम पक्ष का दावा खारिज हो गया।

2.

मुस्लिम पक्ष ने एडवर्स पजेशन का दावा किया। इसका मतलब यह है कि मुस्लिम पक्ष के पास विवादित जमीन का असली मालिकाना हक नहीं था, लेकिन उसने कब्जे के आधार पर मालिकाना हक का दावा किया था। मुस्लिम पक्ष की दलील थी कि अगर हिंदू पक्ष की बात मान भी ली जाए कि मंदिर को ढहाकर मस्जिद बनाई गई, तो उस पर एडवर्स पजेशन का अधिकार बनता है।

वहां पर साल 1528 में बाबर के शासनकाल में बाबरी मस्जिद बनाई गई और मुस्लिमों का कब्जा रहा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष के दावे को सिरे से खारिज कर दिया। याद दिला दे कि इससे पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी मुस्लिम पक्ष के एडवर्स पजेशन की दलील को खारिज कर दिया था।

3.

अयोध्या की पूरी विवादित जमीन का मुस्लिमों ने इस्तेमाल नहीं किया। मंदिर के भीतरी अहाते में मस्जिद थी, जबकि बाहरी अहाते में हिंदू लगातार पूजा करते रहे। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिमों का 2.77 एकड़ विवादित जमीन के पूरे हिस्से में कब्जा नहीं था। मुस्लिम पूरी विवादित जमीन पर नमाज नहीं पढ़ते थे, इसके अलावा कई बार नमाज पढ़ना भी बंद रखा गया।

वहीं, हिंदू पक्षकार जमीन एक हिस्से में लगातार पूजा करते थे। कोर्ट ने माना कि मंदिर के बाहरी अहाते में भगवान राम की पूजा होती रही है। लिहाजा पूरे विवादित जमीन पर मुस्लिम पक्ष का दावा नहीं है। कोर्ट ने कहा कि हिंदू पक्ष की तरह मुस्लिम पक्ष का भी दावा है। लिहाजा यह जमीन रामलला विराजमान को दी जाती है। जानकारों के अनुसार, अगर कोई किसी जमीन पर अपने कब्जे का दावा करता है और उसके एक हिस्से को इस्तेमाल करना छोड़ देता है, तो उसका अधिकार खत्म माना जाता है।

4.

अदालत में सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने दावा किया कि अयोध्या की विवादित जमीन पर मुगल सम्राट बाबर द्वारा या उसके आदेश पर 1528 में बाबरी मस्जिद बनाई गई थी। हालांकि, मस्जिद बनाने की तारीख से 1856-57 यानी 325 साल से ज्यादा समय तक विवादित जमीन पर नमाज पढ़ने की बात साबित नहीं हुई। इस बीच विवादित जमीन पर कब्जे को लेकर मुस्लिम पक्षकार कोई ठोस सबूत भी नहीं पेश कर पाए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जहां तक मंदिर के बाहरी अहाते की बात है, तो वहां पर मुस्लिमों के कब्जे की बात को स्वीकार करना संभव नहीं है। मंदिर के बाहरी अहाते पर हिंदू पूजा करते थे और उनका कब्जा था, यह बात साफ हो रही है।

5.

जानकारों की मानें तो कोर्ट ने पाया कि साल 1856-57 में सांप्रदायिक दंगे के बाद ब्रिटिश काल में ईंट की दीवार बनाई गई थी, ताकि हिंदू-मुस्लिम के बीच विवाद को रोका जा सके और शांति स्थापित की जा सके। इसके बाद मंदिर के बाहरी अहाते में हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दी गई थी।

चबूतरा पर भगवान राम की पूजा करना इस बात का साफ संकेत है कि वहां पर हिंदू लगातार पूजा करते रहे हैं। जब अयोध्या में विवादित जमीन पर ईंट की दीवार बनाई गई, उस समय हिंदू और मुस्लिम में से किसी के मालिकाना हक की बात नहीं की गई। इस दीवार को सिर्फ हिंदू और मुस्लिमों के बीच शांति बहाली के लिए बनाया गया था।

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