Nag Nathaiya Leela: धर्म नगरी वाराणसी अपनी धार्मिक और प्राचीनता परंपराओं के लिए जाना जाता है। सदियों पुरानी परंपराएं आज भी यहां उतने ही उल्लास और उत्साह के साथ मनाया जाता है। वहीं करीब 503 सालों पुरानी एक सी परंपरा आज भी आस्था के साथ गंगा किनारे देखने को मिला है। मानों कुछ देर के लिए गंगा यमुना में बदल गई और काशी मथुरा में बदल गई।
आपको बता दें कि विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया लीला रची गई थी, जिसमें कृष्ण जी के बाल स्वरूप द्वारा गंगा की लहरों के बीच कालिया नाग का मर्दन किया गया था। वहीं इस लीला के माध्यम से सभी लोगों को गंगा को प्रदुषण मुक्त करने का संदेश भी दिया गया था। आइए जानते है कि गंगा तट पर रची गई लीला में क्या-क्या संदेश लोगों को दिया गया है-
ऐसे हुआ लीला का आयोजन
धर्म नगरी वाराणसी के तुलसीघाट पर जुटी हुई हजारों की ये भीड़ पुरानी परंपरा को फिर से ताजा करने के लिए यहां मौजूद हुई है। बता दें कि इस लीला की शुरुआत गोस्वामी तुलसीदेस ने की थी। विश्व प्रसिद्ध नाग नथैया लीला के मंच पर भगवान श्री कृष्ण का बाल स्वरूप और उनकी बाल लीलाएं जीवंत हो उठी थी। कुछ समय के लिए गंगा यमुना में बदल गई और काशी मथुरा में। अपने बाल सखाओं के साथ खेलते वक्त भगवान श्री कृष्ण का समना कालिया नाथ से हुआ और भगवान कृष्ण ने उसका मर्दन भी किया।
वहीं फिर यमुना को गंदा करने वाले कालिया नाग का मर्दन कर भगवान श्री कृष्ण ने यमुना को प्रदूषण से मुक्त करने का संदेश दिया। इसलिए नाग नथैया की इस लीला के माध्यम से लोगों को प्रदूषण मुक्त का संदेश दिया जा रहा है।
लीला देखने पहुंचे हजारों श्रद्धालु
503 सालों पुरानी इस परंपरा को फिर से ताजा बनाने के लिए लोग पूरे साल इसका इंतजार करते हैं। कुछ पलों का यह देखने वाला अद्भुत नजारा श्रद्धालुओं को आस्था के साथ भावुक कर देता है। वाराणसी के काशी में हुए गए आयोजित इस लीला को देखने के लिए देश-विदेश से हजारों की संख्या में श्रद्धालु जुटे हुए है।
बता दें कि वाराणसी में आज भी परंपराओं के साथ ही धार्मिक कार्य किया जाता है। अपनी परंपराओं को आज भी कायम रखने के लिए जाना जाता है वाराणसी का शहर। अपनी परंपराओं को लगातार रखने के लिए वाराणसी एक मिसाल के तौर पर देखा जाता हैं। इसलिए बाबा विश्वनाथ की इस नगरी को तीनों लोक से अलग काशी कहा जाता है।