Secrets of Ravana: नवरात्रि में मां दुर्गा (Maa Durga) की पूजा अराधना के साथ दशहरा की भी तैयारियां शुरु हो जाती है। पंचांग के अनुसार, विजयदशमी का यह पावन पर्व हर साल अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री राम (Shri Ram) ने अपनी प्तनी सीता को रावण के चुंगल से छुड़ाया था। जिसके बाद श्रीराम ने घमण्डी राक्षस यानी रावण का वध किया था। रावण को लंका का राजा और दशानन यानी की दस सिरों वाला राक्षस के नाम से जाना जाता है। वहीं रावण के 10 सिरों के पीछे एक रहस्य छा हुआ है। आइए आपको बताते है रावण के 10 सिरों का बड़ा रहस्य और प्रत्येक सिर का विशेष मतलब।
क्यों कहा जाता है रावण को दशानन ?
दशानन (Dashanan) को अर्थ होता है दशानन जिसके 10 सिर होते है। मान्यता है कि भगवान शिव (Bhagwaan Shiv) को प्रसन्न करने के लिए रावण ने वर्षों तक कठोर तपस्या की थी, लेकिन भगवान शिव रावण की तपस्या से खुश नहीं हुए। इसके बाद रावण ने भगवान शिव को अपना सिर अर्पित करने का निर्णय लिया। भगवान शिव की भक्ति में लीन रावण ने अपने सिर काटकर भगवान शिव के समक्ष रख दिया था। लेकिन ऐसा करने पर रावण की मृत्यु नहीं हुई। फिर से रावण का एक सिर निकल आया। ऐसे करते करते रावण ने अपने 9 सिर काटकर भगवान शिव के सामने रख दिए। लेकिन तब भी भगवान शिव प्रकट नहीं हुए।
बता दें कि जब रावण ने अपना दसवां सिर काटने की कोशिश की तभी अचानक भगवान शिव प्रकट हो गए। फिर भगवान शिव रावण की भक्ति देख भगवान शिव से प्रसन्न हुए। तभी से रावण को शिव जी का भक्तमाना जाता है।
रावण के 10 सिर का मतलब
रावण के दस सिर होते है, जिसमें प्रत्येक सिर का अपना मतलब है। जहां पहला सिर काम, दूसरा क्रोध, तीसरा लोभ, चौथा मोह, पांचवां मादा (गौरव), छठां ईर्ष्या, सातवां मन, आठवां ज्ञान, नौवां चित्त और दसवां अहंकार का प्रतीक है।
10 सिर से जुड़े बड़े रहस्य
लंकापति रावण को दशानन यानी 10 सिरों वाले राक्षस के नाम से जाना जाता है। रावण के 10 सिर और 20 भुजाएं भी होती है। जिसकी वजह से रावण का नाम दशमुखा (दस मुख वाला) और दशग्रीव (दस सिर वाला) भी रखा गया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, रावण 65 प्रकार के ज्ञान और हथियार की सभी कलाओं को जानता था।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, रावण को लेकर कई सारी कथाएं है। लेकिन आज भी लोग रावण के 10 सिरों का रहस्य नहीं जानते है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए लंकापति रावण ने वर्षों तक शिव जी की कठोर तपस्या की थी। लेकिन जब भगवान शिव रावण की तपस्या से प्रसन्न नहीं हुए तब रावण ने भगवान शिव को अपने सिर अर्पित करने का निर्णय लिया था। एक-एक करके रावण ने अपने 9 सिर काटकर भगवान शिव को अर्पित कर दिए। जिसके बाद जब रावण अपना दसवां सिर काटने लगे तो भगवान शिव प्रकट हुए और रावण की तपस्या से अति प्रसन्न भी हुए।