इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम पर कांग्रेस की प्रेस कॉन्फ्रेंस, PMO को लेकर किया ये खुलासा

कांग्रेस मुख्यालय में इलेक्टरल बॉण्ड की स्कीम को लेकर आज प्रेस कॉन्फ्रेंस की है. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है, एक ऐसा विषय जो सरकार और सरकार के हुकमरानों की जिम्मेवारी निर्धारित करता है।

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कांग्रेस मुख्यालय में इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम को लेकर आज प्रेस कॉन्फ्रेंस की है। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में पार्टी के प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज एक बहुत ही महत्वपूर्ण विषय है, एक ऐसा विषय जो सरकार और सरकार के हुकमरानों की जिम्मेवारी निर्धारित करता है।

सुरजेवाला ने गुलाम नबी आजाद से निर्धारित विषय पर रखने का अनुरोध किया, गुलाम नबी आजाद ने कहा आज की जो ये प्रेस वार्ता है, बहुत ही महत्वपूर्ण है और विशेष है, मैं कहूंगा कि पिछले 6 सालों में सबसे महत्वपूर्ण है। क्योंकि जिस सब्जेक्ट पर हम बोल रहे हैं, वो सब्जेक्ट सीधे माननीय प्रधानमंत्री के ऑफिस तक चला जाता है।

गुलाम नबी आजाद ने कहा, कई बार सदन के बाहर, सदन के अंदर चर्चा हुई है बीजेपी की सरकार इस देश के चंद, लगभग एक दर्जन या मुठ्ठी भर बिजनेसमैनों के साथ मिलकर सरकार और देश का बिजनेस चला रहे हैं। देश का 90 प्रतिशत बिजनेस इस रुलिंग गवर्मेंट के सहयोगियों के द्वारा देश और विदेश में चलता है। उन बिजनेसमैनों के द्वारा बीजेपी की सरकार यहाँ चलती है।

आजाद ने कहा, अभी तक जब राजनीतिक दल इस पर चर्चा करते थे, तो राजनीतिक दलों पर ये आरोप लगाया जाता था कि ये पार्टी पॉलिटिक्स के कारण ऐसा बोलते हैं, लेकिन पहली बार आरटीआई के द्वारा ये साबित हो गया है कि जो हमारे आरोप थे, हमारी जो टिप्पणियां थी, वो गलत नहीं थी।

वो ठोस आधार पर थी और इस आरटीआई के द्वारा वो तमाम चीजें जहाँ पर हस्ताक्षर ऑफिसर के भी हैं, उन्होंने क्या टिप्पणी की है, कितनी बार उसमें मैंशन (mention) है कि पीएमओ के कहने से जो इलेक्टरल बॉण्ड की स्कीम थी, उन रुल्स को किस तरह से तोड़ा जाए, ये शायद पहली बार होगा कि सरकार रुल बनाए और पीएमओ कहे कि रुल तोड़ो।

गुलाम नबी आजाद ने कहा ये लिखित में है। हम लोग भी सरकार में रहे हैं, हमने ऐसी फाइलें पहली बार देखी कि घर का मुखिया ही कहे कि चोरी करो। ये जो कॉन्सपिरेसी (conspiracy) बनी थी कुछ बिजनेस हाउसिस के बीच और जैसा मैंने कहा कुछ बिजनेसमैनों के बीच और सरकार के बीच में कि इलेक्टोरल बॉन्ड जारी किए जाएँ, एक कॉंसपिरेसी थी और जिस कॉंसपिरेसी की जो आधारशिला थी, वो तीन चीजों पर आधारित थी।

1. डोनर जो पैसा देगा, वो अपना नाम छुपा कर रखेगा, उसको डिस्क्लोज करने की जरुरत नहीं है कि कितना फंड उसने दिया या उसका नाम क्या है। जो पॉलिटिक्ल पार्टी उस डोनर से पैसा लेती है, उस पॉलिटिक्ल पार्टी को भी ये जरुरी नहीं है कि उस डोनर का वो नाम बताए, कितना पैसा वो बिजनेसमैन पॉलिटिक्ल पार्टी को दे, इसकी कोई सीमा निर्धारित नहीं की।

आप जानते हैं कि एक तरफ से आप ब्लैक मनी दे दो और दूसरी तरफ से वाइट मनी ले लो। ये आधारशिला थी, जिसके आधार पर ये नकली मकान बनाया गया था। अब इस पर किसने आपत्ति की, विपक्ष आपत्ति करे तो समझ आ सकता है कि कहेंगे कि ये विपक्षी दल हैं, इनको तो आपत्ति जतानी है, लेकिन इस पर आपत्ति जता रहा है आरबीआई!

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया का क्या कहना है, ‘इससे मनी लॉंड्रिंग को फायदा होगा, मनी लॉड्रिंग इससे बढ़ेगी, ये स्कीम जो सरकार ने बनाई है, इससे मनी लॉड्रिंग को आप प्रोत्साहित करते हैं और जो मनी लॉड्रिंग को रोकने का प्रावधान है, आत्मा है, वो इसी से मर जाती है कि आप खुद ही रास्ता चुन रहे हैं मनी लॉड्रिंग का, तो मनी लॉड्रिंग कानून बनाने का फायदा क्या है ? जो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के नोट हैं, उसको भी आप अंडरमाइन करते हैं।

जब आप नाम भी नहीं बता रहे हैं कि कौन पैसा दे रहा है, वो कोई फ्रॉड व्यक्ति दे रहा है, वो कोई स्मगलर दे रहा है, वो कोई आंतकवादी दे रहा है, जब डोनर का नाम ही नहीं लिया जा रहा है तो कोई भी दे सकता है। तो ये इसको मैं कहूंगा कि ये गैर कानूनी चीज है कि आप नाम भी नहीं बताएंगे कि किसने ये पैसा दिया है।

रिजर्व बैंक के बाद, दूसरा बड़ा इंस्टीट्यूशन कौन है, वो है- चुनाव आयोग, जिसकी देख-रेख में देश के चुनाव होते हैं और सीधा कनेक्टेड़ है इन तमाम चीजों से। चुनाव आयोग कहता है कि इससे तमाम डोनेशन देने की जो पारदर्शिता है, वो खत्म हो जाती है। This will end the ‘transparency of the donation’. जो पारदर्शिता है, वही खत्म हो जाती है डोनेशन की। ये कोट-अनकोट चुनाव आयोग कहता है।

2. It would lead to “increased use of black money for political funding through shell companies”, कि ऐसा करने से जो आपकी ब्लैक मनी का जो फ्लो होगा वो शैल कंपनी के द्वारा पॉलिटिक्ल पार्टी को मिलेगा। एक तरफ माननीय प्रधानमंत्री और फाईनेंस मिनिस्टर पिछले कई सालों से कह रहे हैं कि हमने शैल कंपनियां खत्म कर दी, इस देश में पहले शैल कंपनियां चलती थी।

चुनाव आय़ोग कहता था कि आप ये करोगे, तो शैल कंपनियां और खुलेंगी और उनके द्वारा ही ये तमाम पैसा राजनीतिक पार्टियों को मिलेगा। जैसा मैंने कहा कि आरटीआई में बार-बार लिखा है कि ये तमाम चीजें पीएमओ और पीएमओ के इंस्टेंस (insistence) पर हुई हैं।

गुलाम नबी ने कहा आनंद शर्मा जी ने विस्तार से इसके बारे में पढ़ा है, देखा है, मैं उनसे कहूंगा कि वो इस पर विस्तार से डिटेल में चर्चा करें। आनंद शर्मा ने इस विषय की गंभीरता को, गहराई को और भारत की राजनीति में किस तरह से भ्रष्टाचार का सरकारीकरण किया गया है, वो सामने आता है। उन्होंने कहा, सरकार जब बियरर इलेक्टोरल बॉन्ड (Bearer Electoral Bond) की स्कीम लेकर आई थी, उस पर आपत्ति दो बड़ी संस्थाओं की थी – रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया और दूसरा चुनाव आयोग।

सरकार ने उसको नजरअंदाज किया था, क्योंकि वो जानते थे कि अगर ये तरीका लागू किया जाएगा तो बड़ी-बड़ी कंपनियों के माध्यम से भारतीय जनता पार्टी चंदा इक्कट्ठा कर सकेगी। चुनाव आयोग ने जो बुनियादी बात कही थी कि इससे पारदर्शिता खत्म होती है। It will destroy the transparency of political funding. य़ही चुनाव आयोग की भी उसमें आपत्ति थी, क्योंकि जो पैसा दे रहा है, उसकी आईडेंटिटी पता नहीं लगेगी, राजनैतिक दल उसको बताएंगे नहीं, ना चुनाव आयोग को पता होगा, ना सर्वोच्च न्यायालय को पता होगा कि ये पैसा किसने दिया है।

इसकी जानकारी मुख्य रुप से केवल सरकार को रहेगी, क्योंकि एसबीआई के माध्यम से ये बियरर इलेक्टोरल बॉन्ड (Bearer Electoral Bond) जारी किए गए, जो अपने आप में एक करंसी की तरह हैं और वो जानकारी जो काउंटर फॉयल्स पर है, वो आरबीआई के माध्यम से भारत की सरकार के पास रहेगी। ये एक वास्तविकता है।

शर्मा ने कहा इसके मायने ये है कि इलेक्टोरल बॉन्ड की स्कीम के माध्यम से जो पैसा आएगा वो पैसा सीधा जहाँ बड़े पैमाने पर भारतीय जनता पार्टी के पास जाता है, उसकी जानकारी देश को नहीं होगी एवं किसी और दल को कोई भी इंडस्ट्रीयल हाउस चंदा नहीं देगा, क्योंकि अगर देंगे तो वो जानकारी भी सरकार के पास होगी।

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