मौसम में बदलाव आ चुका है। मॉनसून अब अपने दूसरे महीने के दूसरे सप्ताह में जा चुका है, तो देश में सबसे ज्यादा रोजगार देने वाले और खाद्य उत्पादक यानी कृषि क्षेत्र में मंदी के हालात परेशान करने वाले बन रहे हैं। पिछले साल के इसी समय की तुलना में सात जुलाई तक धान की खरीफ की बुआई में 15 फीसद तक की कमी आई है। कुल मिलाकर किसानों ने 63 लाख हेक्टेयर खेतों में अब तक बुआई नहीं की। कुछ वजहों के चलते जून के पहले दो सप्ताहों में बुआई धीमी गति से हुई है। एक सामान्य सीजन में अब तक खरीफ की मुख्य फसल धान को नर्सरी से लेकर खेत में रोप दिया जाता है।
पौधों को रोपना, खेती खासकर धान की फसल का ऐसा चरण होता है, जिसमें मजदूरों की सबसे अधिक जरूरत पड़ती है। बुआई की धीमी प्रगति पहले से ही देश में बेरोजगारी का सबब बन गई है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक और सीईओ महेश व्यास ने जून में बेरोजगारी परिदृश्य के अपने विश्लेषण में काफी गंभीर नतीजों की तरफ इशारा किया है।
खरीफ की फसल लगाने के दौरान अब तक सिर्फ 40 लाख लोग ही इससे जुड़ पाए हैं। इस मानसून में ज्यादातर रोजगार पौधरोपण करने वाले मज़दूरों या पौधों की नर्सरी लगाने वाले मज़दूरों से होता है। लेकिन इस बार 2020 और 2021 की तुलना में बहुत ही कम संख्या में मज़दूर इससे जुड़े हैं।
जून में श्रम-बल की आई कमी
कुल मिलाकर पूरे देश में बेरोजगारी का हाल CMIE ने अपने आकलन में पेश कर दिया है। रिपोर्ट के मुताबिक बहुत से लोगों ने तो नौकरी की तलाश करना भी छोड़ दिया है या फिर वे श्रम-बाजार से बाहर चले गए हैं। ऐसा उस समय होता है जब कोई नौकरी मिलने की उम्मीद ही छोड़ देता है। श्रम-बल को नौकरी की तलाश में लगे लोगों के कुल योग के रूप में परिभाषित कर दिया गया है।
मजदूरी से होती है किसान की आमदनी
देरी से बुआई और कृषि से संभावित कम आय का मतलब यह होता है कि फसल में जितना पैसा लगाया उससे अधिक पैसा उसे वापस मिल जाएगा। लेकिन अगर वह देर से फसल लगाएगा तो वह फसल में जितना पैसा लगाएगा, उतना उसे वापस नहीं मिलेगा और वह कर्ज में डूब जाएगा। आमतौर पर किसान बीज लेने, मजदूर रखने और खेत को तैयार करने जैसे कामों के चलते बुआई के समय सबसे निवेश करते हैं। इसमें सबसे बड़ा मुद्दा ये है कि किसान को फसल से ज्यादा आमदनी मज़दूरी से होती है।
खेतिहर मजदूर को पड़ा सबसे ज्यादा फर्क
खेती के पांच महीने के सीजन में जून सबसे ज्यादा कमाई वाला महीना होता है। इस बार, जून में खेती के मजदूरों की नौकरियों में कमी आने से मजदूर कुछ भी नहीं कमा पाए। इसका खेती से होने वाली उनकी कुल आय पर भी बड़ा असर देखने को मिला है। CMIE का ताजा आंकड़ा दर्शाता है कि जून में कम बुआई से खेतिहर मजदूर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। जब कृषि क्षेत्र में समग्र रूप से नौकरियां घटीं तो किसानों के रूप में काम करने वालों की तादाद में 18 लाख लोगों की वृद्धि हुई है। कृषि क्षेत्र में रोजगार में आई गिरावट, खेतिहर मजूदरों के बीच थी।
इसका मतलब यह है कि गांव में रहने के चलते ही ज्यादातर लोगों ने खेती की। खेतों में मजदूरों को लगाने की बजाय उनमें से कई लोगों ने अपना काम किया। ऐसा लोगों ने इसलिए किया जिससे वह मजदूरी को देने वाला पैसा बचा सकें।
श्रम-बाजार में आए इस खालीपन का एक कारण ये भी है कि खेतिहर वाले मज़दूर अब जून के महीने में मनरेगा में काम करने वालों की संख्या ज्यादा बढ़ गई है और काम मांगने वालों की संख्या में बहुत बड़ा स्तर बढ़ा है। सूत्रों के हवाले से पता लगा है कि इस वर्ष जून के माह में मनरेगा में जुड़ने वालों की संख्या 3.1 करोड़ तक पहुँच गई है। मई में काम मांगने वालों की संख्या महज 3 करोड़ से कम थी।