Live In Relationship: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा यदि कोई महिला और पुरुष लंबे समय तक एक साथ रहते हैं तो उसे विवाह जैसा ही माना जाएगा। साथ ही उनके बेटों को पैतृक संपत्ति से हिस्सेदारी से वंचित नहीं किया जा सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के उस फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि विवाह के सबूतों के अभाव में साथ रह रहे महिला और पुरुष का ‘नाजायज’ बेटा पैतृक संपत्ति में हिस्सा पाने का हकदार नहीं होगा।
SC ने निचली अदालत के फैसले को किया बहाल
जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस विक्रम नाथ की बैंच ने कहा कि ‘अगर एक पुरुष और महिला लंबे समय तक (Live In Relationship) एक दूसरे के साथ पति और पत्नी की तरह रहते हैं तो उसे विवाह जैसा ही माना जाएगा। साथ ही इस तरह का अनुमान साक्ष्य अधिनियम की धारा 114 के तहत लगाया जा सकता है।’
कोर्ट ने कहा, ‘यह तय है कि यदि एक पुरुष और एक महिला लंबे समय तक पति पत्नी के तौर पर एक साथ रहते हैं तो विवाह के पक्ष में अनुमान लगाया जाएगा।’
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला साल 2009 के केरल हाई कोर्ट के एक फैसले के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान सुनाया।
केरल हाई कोर्ट ने क्या फैसला किया था ?
केरल हाई कोर्ट ने लंबे वक्त एक साथ रह रहे एक महिला और एक पुरुष के बच्चे का पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी के निचली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया था। कोर्ट ने यह कहते हुए इस बात को खारिज कर दिया था कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि याचिकाकर्ता के माता पिता लंबे समय से एक साथ रह रहे हैं। दस्तावेजों से सिर्फ यह साबित होता है कि याचिकाकर्ता महिला-पुरुष का पुत्र है लेकिन वैध पुत्र नहीं है। इसलिए हाईकोर्ट की ओर से संपत्ति बंटवारे की बात खारिज कर दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा ?
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले पर कहा कि जब महिला और पुरुष ने यह साबित किया कि वो दोनों पति पत्नी की तरह साथ रह रहे हैं तो कोर्ट यह मान लेगा कि वो वैध विवाह के परिणामस्वरूप एक साथ रह रहे हैं। साथ ही कोर्ट ने देशभर के ट्रायल कोर्ट को यह भी कहा कि स्वत संज्ञान लेते हुए फाइनल डिक्री पारित करने की प्रक्रिया में तत्परता दिखाएं। कोर्ट ने ये सीपीसी के आदेश 20 नियम 18 के तहत ऐसा करने के लिए कहा है।