मुंबई : मेन्टल हेल्थ के बारे में हम ज्यादा बात नहीं करते कारण है कि हम मेन्टल हेल्थ और पागलपन के फर्क को न खुद समझते हैं न उसे समझने का मौका देते हैं जो इससे जूझ रहा होता है। हमारे यहाँ इमोशंस को छुपाने पर जोर दिया जाता है, ‘जब रोना आता है तो घर के बड़े कहते हैं आंसू पोछो, जब गुस्सा आता है तो बड़े कहते हैं स्माइल करो…. यह सब केवल इसलिए कि लोगों को लगता रहे कि सब सामान्य है या घर में शांति है’
बदला नहीं है हर समस्या का हल !
अगर घर से हटकर अगर बात फिल्मों की करें तो ‘मेन्टल हेल्थ’ से जुड़ी कोई भी बात, तकलीफ हो तो उसका इलाज अक्सर बदला यानी कि रिवेंज दिखाते थे। यह मानसिकता बना दी जाती थी, हालांकि तब और अब में काफी बदलाव देखा जा सकता है। उस वक़्त का समाज जैसा मानता था, फिल्मों में भी लगभग वही दिखाया जाता था। अब फिल्मों में कई बार इस अहम मुद्दे पर बात होती है.. तो आइए जानते हैं कि मेन्टल हेल्थ से जुडी कौन सी फिल्मे हैं जिन्हें सभी के साथ देखना चाहिए…
इन फिल्मों को क्यों देखना चाहिए ?
हम अक्सर अपनी बातों में आगरा और बरेली पर चुटकुला मार देते हैं, यह सभी चीजें बताती हैं कि हम ‘मेन्टल हेल्थ’ जैसे संगीन मुद्दे पर को लेकर कितना जागरूक हैं। इससे उलट अब बात करते हैं कुछ ऐसी फिल्मों की जिन्होंने बेहद संजीदगी से इन मुद्दों पर बात की और सबको अवेयर करने का काम भी किया।
आज World Mental Health Day है, इस मौके पर हम आपके लिए ऐसी 5 फिल्मों की लिस्ट लाए हैं जो आपको ज़रूर देखनी चाहिए।
- तमाशा
- डियर ज़िन्दगी
- छिछोरे
- तारे ज़मीन पर
- थ्री इडियट्स
तमाशा
निर्देशक इम्तियाज अली की सबसे उम्दा फिल्मों में से एक ‘तमाशा’ ने लाखों लोगों को जागरूक किया। इस फिल्म ने हज़ारों-लाखों लोगों को रूटीन लाइफ को तोड़ने की हिम्मत दी। ज़िन्दगी में सब जब व्यवस्थित लगता है तो भी बहुत लोग नहीं झेल पाते। बेटा ऐसा पहनो, यहाँ पढ़ो, ऐसी जॉब करो, अब शादी, अब बच्चे.. तमाशा देखकर आप ज़िन्दगी को नए ढंग से देख सकेंगे। इस फिल्म में वेद के किरदार में रनवीर ने काम किया है और ऐसा किरदार निभाया है जो अपने साथ हो रहे मेन्टल हेल्थ के खिलवाड़ के खिलाफ आवाज़ नहीं उठा पाता। फिल्म के गानों में फिल्म के मर्म को समझा जा सकता है। इरशाद कामिल और ए आर रहमान के गाने ‘तू कोई और है’ में समझा जा सकता है….
डियर ज़िन्दगी
निर्देशक गौरी शिंदे ने यह बेहद खूबसूरत फिल्म बनाई। फिल्म में ऐसी कई सीन हैं जिसमे यह समझाने की कोशिश की गई है कि जितनी इस शरीर की तबियत का हाल पूछते हैं, उतना ही ज़रूरी है इस दिमाग के हाल जानने-पूछते रहने का। फिल्म में शाहरुख़ खान और आलिया भट्ट हैं जिन्होंने आपस में कई सीन के दौरान न पूछे जाने वाले दर्जनों सवालों के जवाब दिए हैं। फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि जिन्हें हम ‘अरे कुछ नहीं होता, तू ये सब इग्नोर कर’ कहते हैं, गलत है।
छिछोरे
सुशांत अब हमारे बीच नहीं हैं लेकिन यह फिल्म देखने के बाद यकीं करना मुश्किल हो जाएगा कि उन्होंने दुनिया को कैसे अलविदा कहा… ‘सक्सेस के बाद का प्लान सबके पास है, लेकिन अगर फेल हो गए तो फेलियर से कैसे डील करना है, कोई नहीं बताता’, सुशांत सिंह राजपूत का यही डायलॉग छिछोरे फिल्म का सार दे देता है। फिल्म में एक्सपेक्टेशन से पनपने वाले बोझ को दर्शाया गया है।
तारे ज़मीन पर
रिलीज होने के बाद से बच्चों की मेन्टल हेल्थ के बारे में बनी यह सबसे उम्दा फिल्म कही जा सकती है। एक बच्चा जो 3 और 8, अंग्रेजी के D और B का फ़र्क़ नहीं समझ पाता, जो पिता के लिए ‘मेरी इज़्ज़त डुबो के रहेगा’ वाला बेटा है। ऐसे बहुत से बेटे हमारे आसपास थे और हैं…. उन्हें यह फिल्म देखनी चाहिए। बच्चों की मानसिक समस्याओं पर बनी इस फिल्म को हर अभिभावक को देखना चाहिए।
थ्री इडियट्स
अब बात करते हैं उस फिल्म की जिसने एक पूरी पीढ़ी को यह समझाया कि ज़िन्दगी के सबसे कठिन मौकों पर भी ‘ऑल इस वेल’ कहकर आप सकते हैं। पढ़ाई से पनपे प्रेशर और नौकरी के पीछे भागते यूथ को टारगेट करती यह फिल्म कॉमेडी के साथ-साथ इतने संजीदा मुद्दे को उठाती है जिससे आज का हर युवा जूझ रहा है। निर्देशक राजू हिरानी ने आमिर खान, माधवन और शरमन जोशी के साथ मिलकर एक बेहद ज़रूरी फिल्म बनाई जिसे दर्शकों का खूब प्यार भी मिला।