New Delhi: प्रकृति पूजन का हरेल पर्व (Harela Festival 2020) गुरुवार यानी आज मनाया जा रहा है। कुमाऊं में हरेले से ही श्रावण मास और वर्षा ऋतु का आरंभ होता है। हरेले (Harela Festival 2020) के तिनकों को इष्ट देव को अर्पित कर अच्छा जीवन, जानवरों की रक्षा और परिवार व मित्रों की कुशलता की कामना की जाती है। हरेले की पहली शाम डेकर पूजन की परंपरा भी निभाई जाती है।
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हरेले (Harela Festival 2020) से पहली शाम डेकर यानी श्री हरकाली पूजन होता है। घर के आंगन से शुद्ध मिट्टी लेकर शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय आदि की छोटी मूर्तियां तैयार की जाती हैं। उन्हें रंगने के साथ बाकायदा श्रृंगार किया जाता है।
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उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेशवासियों से आह्वान किया है कि वे आज हरेला पर्व से जुड़ें और एक पौधा अवश्य लगाएं। उन्होंने हरेला पर्व के महत्व और उससे जुड़ने की अपील को लेकर एक वीडियो संदेश भी साझा किया। यह वीडियो सोशल मीडिया पर जारी हुआ।
16 जुलाई, #हरेला पर्व के पावन अवसर पर हर व्यक्ति 01 पौधा अवश्य लगाए और वृक्षारोपण के साथ ही जलस्रोतों के संरक्षण का भी संकल्प लें। इस बार कोविड-19 के कारण हरेला पर्व पर पहले की तरह कार्यक्रमों का आयोजन सम्भव नही है, परंतु हमारा पर्यावरण संरक्षण का अभियान निरंतर जारी रहना चाहिए। pic.twitter.com/sxTKQUfHco
— Trivendra Singh Rawat (@tsrawatbjp) July 15, 2020
इस संदेश में उन्होंने कहा कि “प्रकृति के चक्र को मजबूत बनाने, जल, जमीन जंगल, स्वास्थ्य को बचाने के लिए हम पेड़ों का महत्व समझते हैं। इसलिए हमारे बुजुर्गों ने ऐसे पर्व मनाने की परंपरा शुरू की थी। हरेला पर संकल्प लें, एक पौधा जरूर लगाना है। अपने घरों में भी पौधों लगा सकते हैं।”
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आपको बता दें कि, पांच, सात या नौ अनाजों को मिलाकर हरेले से नौ दिन पहले दो बर्तनों में उसे बोया जाता है। जिसे मंदिर में रखा जाता है। इस दौरान हरेले को पानी दिया जाता है। दो से तीन दिन में हरेला अंकुरित होने लगता है। सूर्य की सीधी रोशन से दूर होने के हरेला यानी अनाज की पत्तियों का रंग पीला होता है। परिवार को बुजुर्ग सदस्य हरेला काटता है और सबसे पहले गोलज्यू, देवी भगवती, गंगानाथ, भूमिया आदि देवों को अर्पित किया जाता है। इसके बाद परिवार की बुजुर्ग महिला व दूसरे परिजनों को हरेला का आशीर्वाद दिया जाता है।