International Labour Day: जाने क्यों मनाते है श्रमिक दिवस, क्या हैं कहानी

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International Labour Day: आज यानी 1 मई को दुनिया भर में मजदूर दिवस ( majdur diwas ) या श्रमिक दिवस मनाया जा रहा है. भारत में मई दिवस और इंटरनेशनल लेबर डे ( international labour day ) को कामगारों के बीच जश्न के साथ मनाए जाने की शुरुआत दुनिया के करीब 34 साल बाद हुई.

मजदूरों का सम्मान, उनके काम के घंटे, मेहनताने वगैरह को लेकर एक व्यवस्था के लिए आंदोलन शुरू होने की याद में इस दिन को दुनिया के कई देशों और अपने देश के कई राज्यों में सार्वजनिक अवकाश रहता है. मजूदरों के लिए समर्पित उस आंदोलन को शिकागो आंदोलन के नाम से भी जानते हैं.

आइए, जानने की कोशिश करते हैं कि अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस का इतिहास और उसकी पृष्ठभूमि ( history and facts ) क्या है.

आज से 136 साल पहले दुनिया भर में मजदूरों के लिए काम करने की कोई समय-सीमा तय नहीं थी. उनके लिए कोई नियम-कायदे ही नहीं होते थे. मजदूरों से लगातार 15 घंटे या उससे भी ज्यादा समय तक काम लिया जाता था.

उनकी छुट्टियों को लेकर भी कोई व्यवस्था नहीं थी. इसकी वजह से साल 1886 में 1 मई को अमेरिका के शिकागो शहर में एकजुट होकर हजारों मजदूरों ने बड़ा प्रदर्शन किया था. उनकी मांग थी कि मजदूरी का समय 8 घंटे निर्धारित किया जाए. इसके अलावा हफ्ते में एक दिन छुट्टी दी जाए.

रंग लाया था शिकागो का मजदूर आंदोलन(Reason Behind International Labour Day)

आज लगभग पूरी दुनिया में वैधानिक रूप से कर्मचारियों, मजदूरों या कामगारों के लिए एक दिन में काम के 8 घंटे तय हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह शिकागो आंदोलन को ही माना जाता है.

हफ्ते में एक दिन छुट्टी की शुरुआत भी इस आंदोलन की देन ही मानी जाती है. धीरे-धीरे पूरी दुनिया में 1 मई को मजदूर दिवस या कामगार दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत हो गई. दुनिया के कई देशों में 1 मई को राष्ट्रीय अवकाश के तौर पर मनाया जाता है.

आंदोलन में  4 मजदूर बलिदान- 100 घायल

अमेरिका में शिकागो आंदोलन तेज होने लगा और आंदोलनकारियों ने 4 मई, 1886 को स्थानीय पुलिस को निशाना बनाकर बम फेंक दिया. पुलिस की जवाबी गोलीबारी में 4 मजदूरों की मौत हो गई.

साथ ही करीब 100 मजदूर पुलिस की गोली से घायल हो गए. इसके बावजूद उनका आंदोलन चलता रहा. इसके तीन साल बाद 1889 में  पेरिस में हुए इंटरनेशनल सोशलिस्ट कॉन्फ्रेंस में बलिदान देने वाले मजदूरों की याद में 1 मई के दिन को समर्पित करने का फैसला किया गया था.

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