ये कलयुग(KALYUG) के अंत का आगाज़ है या भारी विनाशकारी आपदाओं (disaster) का आगमन। उत्तराखंड(UTRAKHNAD) के जोशीमठ(JOSHIMATH) धाम में जो रहा है. वो किसी भयावह आपदा से कम नहीं है. ज़मीनें धसतीं जा रही हैं. मकानों में चारों तरफ दरार ही दरार हैं. और कहीं न कहीं ये इशारा कर रहीं है. कलयुग के अंत का, जिसकी भविष्यवाणी कुछ ऐसा ही अंदेशा दे रही है.
केदारनाथ और बद्रीनाथ भी हो जायेंगे विलुप्त
कई युगों पहले की,की गयी भविष्यवाणी शायद कहीं सच तो नहीं होने जा रहीं हैं. अगर सच हुईं तो बद्रीनाथ (Badrinath) और केदारनाथ (Kedarnath) भी विलुप्त होने की आपदाओं का खामियाज़ा भुगतेंगे. ग्रंथों और धार्मिक किताबों में युगों पहले की गयी जिस भविष्यवाणी का ज़िक्र है, आज जोशीमठ के हालात को देखकर सच होता हुआ दिखाई दे रहा है. इन ग्रंथों में लिखा गया है कि जोशीमठ (Joshimath) के नरसिंह मंदिर(MANDIR) की मूर्ति धीरे-धीरे खंडित हो जाएगी और बद्रीनाथ व केदारनाथ जैसे महत्वपूर्ण तीर्थस्थल लुप्त होने के कगार पर आ जायेंगे. मौजूदा स्थिति को देखते हुए कहीं न कहीं इन भविष्यवाणियों का सच होना तय माना जा रहा है.
जोशीमठ की भविष्यवाणी हुई सच
जोशीमठ(Joshimath) के मंदिर में भगवान नरसिंह की एक प्राचीन मूर्ति है. यहाँ इस प्राचीन मूर्ति यानी की भगवान नरसिंह की मूर्ति को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. दरअसल नरसिंह भगवान का एक बाजू सामान्य है जबकि दूसरा बाजू काफी पतला है और यह साल दर साल और पतला होता जा रहा है.और इसी बदलाव को देखते हुए यह आशंका जताई जा रही हैं कि,जैसे जैसे भगवान नरसिंह का एक हाथ पतला होता जायेगा, और अगर यह आखिर में आकर टूट जाता है, तो किसी ना किसी आपदा का आना तय है. लोगों का कहना है कि , अगर ऐसा हुआ तो, उस दिन बद्रीनाथ का मार्ग बंद हो जाएगा।और इसके साथ ही लोग भगवान बद्रीनाथ के दर्शन नहीं कर पाएंगे.
महाभारत और रामायण के युग से इस पवित्र धाम का है महत्त्व
जोशीमठ के बद्रीनाथ(Badrinath) और केदारनाथ धाम का महत्त्व और अस्तित्व प्रचीनकाल से है, जब रामायण (Ramayana ) और महाभारत के युग का दौर था. रामायण काल में हनुमानजी का आगमन हुआ था. लक्ष्मणजी जब मेघनाद के शक्ति बाण से मूर्छित हो गए थे तब हनुमानजी संजीवनी बूटी की खोज में यहां आए थे. अब अगर महाभारत (Mahabharat) के युग की बात करें तो महर्षि वेदव्यास ने ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति के लिए पांडवों को इसी तीर्थ स्थल पर पूजा-पाठ करने की सलाह दी थी. जहाँ पांचों पांडवों ने पूजा-पाठ किया था. देवतागण भी इसी तीर्थ स्थल पर भगवान शिव के दर्शन के लिए आते थे और भगवान के दर्शन करते थे.