Chhath Puja History: छठ पूजा कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की पष्ठी तिति को मनाई जाती है। दिवाली (Diwali) के बाद ही छठ पूजा (Chhath Puja) की शुरुआत होती है। बता दें कि छठ पूजा में प्रात:काल में सूर्य ग्रहण को अर्घ्य देकर परण करने के बाद ही व्रत को पूरा किया जाता हैं। वहीं छठ पूजा एक दिन का नहीं बल्कि चार दिवसीय पर्व होता है। छठ पूजा का पर्व नहाय खाय से प्रारंभ होता है।
वहीं छठ पूजा (Chhath Puja) के दिन व्रत से पहले सभी महिलाओं के लिए स्नान करना जरूरी होता है। इसके बाद महिलाएं सात्विक भोजन ग्रहण करती हैं और इसी पूरी क्रिया को नहाय-खाय कहा जाता है। छठ पूजा के बनाने के पीछे कई सारे महत्व छिपे हुए है। आइए आपको बताते है कि छठ पूजा का इतिहास क्या है और क्यों मनाई जाती है छठ पूजा-
छठ पूजा का इतिहास
रामायण के अनुसार
रामायण के अनुसार लंका विजय के बाद रामराज्य की स्थापना के दिन भगवान राम और माता सीता ने उपवास रखा था। बता दें कि भगवान राम और सीता माता ने कार्तिक मास की शुकल पक्ष की पष्ठी तिथि को यह व्रत रखकर सूर्यदेव की अराधना की थी। जिसके बाद उन्होंने सप्तमी को सूर्योदय के समय पुन: संस्कार करने के बाद सूर्य देवता से आशीर्वाद भी प्राप्त किया था।
महाभारत के अनुसार
महाभारत के अनुसार माना जाता है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। इस दिन सबसे पहले सूर्यदेव के पुत्र कर्ण ने सूर्यदेव की पूजा शुरू की थी। बता दें कि कर्ण सूर्यदेव के परम भक्त थे। साथ ही कर्ण हर दिन सूर्यदेव को कमर तक पानी में खड़े होकर घंटों तक अर्घ्य देते थे। इसके बाद से ही कर्ण सूर्यदेव की कृपा से महान योद्धा बने थे।
पुराणों के अनुसार
पुराणों के सार राजा प्रयवद को कोई भी संतान नहीं थी, तब ऋषि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ को कराया और फिर यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर अपनी पत्नी को दे दी। बता दें कि इसके चलते उन्हें पुत्र तो हुआ लेकिन वह मृत हो गया। फिर राजा प्रयवाद अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान घाट गए और पुत्र को पुत्र वियोग में उसके प्राण त्यागने लगे। लेकिन उसी वक्त ब्रह्मा जी की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुईं।
उन्होंने प्रकट होने के बाद कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृत्ति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मैं षष्ठी कहलाती हूं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा – ‘हे! राजन आप मेरी पूजा करें और बाकि लोगों को भी मेरी पूजा करने के लिए प्रेरित करें।’ बता दें कि राजा प्रयवद ने पुत्र की इच्छा की मनोकामना करते हुए देवी पष्ठी का व्रत किया और इसके बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति भी हो गई।