6 दिन पहले हो गई थी मौत, बिना केमिकल के आज भी ताजा है शरीर

हैरानी की बात है कि लामा का शरीर बिल्कुल तरोताजा लगता है तथा उनके जिंदा होने का एहसास होता है। हालांकि उन्हें शरीर छोड़े हुए एक हफ्ता हो चुका है...

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बिना बर्फ और केमिकल के ताजा है मृत शरीर, 6 दिन पहले हो गई थी मौत

नई दिल्ली। रिवालसर बौद्ध मंदिर के प्रमुख लामा बागडोर रिम्पोछे उर्फ ओंगदू ने एक हफ्ते पहले अपना शरीर त्याग दिया है। हैरान करने वाली बात ये है कि हफ्ते भर पहले शरीर त्यागने के बावजूद उनका शरीर ताजा है। समाधि में लीन लामा के शरीर को बिना बर्फ के रखा हुआ है इतना ही नहीं उनके शरीर पर किसी प्रकार के केमिकल का लेप भी नहीं लगाया गया है। इसके बावजूद दर्शन करने वालों को ऐसा लगता है कि लामा जी अभी उठ खड़े हो जाएंगे।

हैरानी की बात है कि लामा का शरीर बिल्कुल तरोताजा लगता है तथा उनके जिंदा होने का एहसास होता है। हालांकि उन्हें शरीर छोड़े हुए एक हफ्ता हो चुका है।

दाह संस्कार को लेकर कही ये बात

जिगर मूर्ति बौद्ध मन्दिर का कामकाज देख रहे याप मिनचुंग दोरजे और अनी केलसंग से जब लामा के शरीर के दाह संस्कार के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि लामा बागडोर रिम्पोछे का शरीर अपने आप जब तक दाह संस्कार का अहसास नहीं कराएगा, तब तक पूजा पाठ का क्रम चलता रहेगा और शरीर को इस अवस्था में रखा जाएगा। उचित समय आने पर दाह संस्कार होगा।

देश-विदेश में बनाई खास पहचान

रिवालसर बौद्ध मंदिर के प्रमुख लामा बागडोर रिम्पोछे उर्फ ओंगदू ने हिंदू और बौद्ध अनुयायियों में अपनी खास पहचान बनाई और देश-विदेश में काफी मशहूर रहे। उन्होंने 18 सितंबर की सुबह 2:52 बजे अपना शरीर त्याग दिया और समाधि में लीन हो गए। देश-विदेशों से लोग उनके अंतिम दर्शन के लिए रिवालसर पहुंच रहे हैं। आपको बता दें कि रिवालसर हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में स्थ‍ित है।

कई सालों तक की तपस्या

लामा बागडोर रिम्पोछे का जन्म तिब्बत के खम प्रांत स्थित जिगर में 20 फरवरी 1932 में हुआ था। वर्ष 1958 में वह तिब्बत छोड़ अपने गुरु टुकसी रिम्पोछे को अपनी पीठ पर उठाकर पहाड़ों को लांघते हुए यहां पहुंचे थे। रिवालसर स्थित सरकी धार पहाड़ी पर कई वर्षों तक अकेले तपस्या में लीन रहे वह बहुत बड़े तपस्वी व सिद्धपुरुष थे।

हिंदू-बौद्ध धर्म के लिए किए कई काम

लामा बागडोर रिम्पोछे ति‍ब्ब‍त‍ियों के साथ हिंदुओं की भलाई वाले कार्यों में हरदम तत्पर रहते थे। करीब 87 वर्ष की आयु में अकस्मात देह छोड़ने से स्थानीय लोग व भक्त खुद को बेसहारा महसूस कर रहे हैं। लामा के देह त्याग के बाद देश-विदेशों से आए लामा लोग लगातार पूजा-पाठ कर रहे हैं।

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